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कभी-कभी / त्रिनेत्र जोशी

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कभी-कभी
चुपचाप
खो जाती हैं चीजेंचीज़ें
जैसे आज़ादी
कभी-कभी बेहिसाब
आ जाता है गुस्सा
जैसे अंधड़अंन्धड़
कभी-कभी चुपचाप
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