भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रणय / वास्को पोपा / राजेश चन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वास्को पोपा |अनुवादक=राजेश चन्द्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:40, 25 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण
हर कोई छील लेता है अपनी ही चमड़ी को
हर कोई अनावृत करता है अपने नक्षत्र को
जिसने देखा नहीं कभी किसी रात को
हर कोई पूर लेता है अपनी चमड़ी को चट्टानों से
और ठिठोली करता है उनके साथ
रोशनी में, अपने ही सितारों की
जो नहीं ठहरता सुबह होने तक
पलकें नहीं झपकाता, गिरता नहीं
वह पा लेता है अपनी चमड़ी को फिर से
(यह खेल शायद ही कभी खेला गया हो)
अँग्रेज़ी से अनुवाद – राजेश चन्द्र