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"मेरे पुरखों के गांव में / वास्को पोपा / राजेश चन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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और याचना करता हूँ आँखों ही आँखों में उससे | और याचना करता हूँ आँखों ही आँखों में उससे | ||
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15:50, 25 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण
कोई गले लगा लेता है मुझे
कोई घूरता है भेड़िये की आँखों से
कोई उतार लेता है अपनी टोपी
ताकि देख सकूँ मैं ठीक तरह से उसे
हर कोई पूछता है मुझसे
कि क्या तुम जानते हो मैं कितना सगा हूँ तुम्हारा
अनजान वृद्ध पुरुष और स्त्रियाँ
सुधारती हैं नाम
जवान पुरुषों और स्त्रियों के
मेरी स्मृति में
मैं उनमें से किसी एक से पूछता हूँ,
भगवान के लिए बताओ मुझे
कि क्या जॉर्ज वुल्फ़ जीवित है अब भी
मैं ही तो हूँ
वह जवाब देता है मुझे
उसकी आवाज़ जैसे दूसरी दुनिया से आती हुई
मैं छूकर देखता हूँ उसके गालों को अपने हाथ से
और याचना करता हूँ आँखों ही आँखों में उससे
कि मुझे बताए क्या मैं जीवित हूँ अब भी
अँग्रेज़ी से अनुवाद – राजेश चन्द्र