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"हिमालय / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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डिगता कभी न अपने प्रण से<br>
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रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!<br><br>
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जो जो भी बाधायें आईं<br>
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उन सब से ही लड़ा हिमालय,<br>
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इसीलिए तो दुनिया भर में<br>
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तो भारत के शीश चमकता<br>
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नहीं मुकुट–सा जड़ा हिमालय!<br><br>
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डरो आँधी पानी में,<br>
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सब कुछ पा सकते हो प्यारे!
खड़े रहो अपने पथ पर<br>
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तुम भी ऊँचे हो सकते हो
सब कठिनाई तूफानी में!<br><br>
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छू सकते नभ के तारे!!
  
डिगो न अपने प्रण से तो ––<br>
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अचल रहा जो अपने पथ पर  
सब कुछ पा सकते हो प्यारे!<br>
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लाख मुसीबत आने में,  
तुम भी ऊँचे हो सकते हो<br>
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मिली सफलता जग में उसको  
छू सकते नभ के तारे!!<br><br>
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जीने में मर जाने में!  
 
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अचल रहा जो अपने पथ पर<br>
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लाख मुसीबत आने में,<br>
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मिली सफलता जग में उसको<br>
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जीने में मर जाने में! <br><br>
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21:46, 26 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण

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युग युग से है अपने पथ पर
देखो कैसा खड़ा हिमालय!
डिगता कभी न अपने प्रण से
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!

जो जो भी बाधायें आईं
उन सब से ही लड़ा हिमालय,
इसीलिए तो दुनिया भर में
हुआ सभी से बड़ा हिमालय!

अगर न करता काम कभी कुछ
रहता हरदम पड़ा हिमालय
तो भारत के शीश चमकता
नहीं मुकुट–सा जड़ा हिमालय!

खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आँधी पानी में,
खड़े रहो अपने पथ पर
सब कठिनाई तूफानी में!

डिगो न अपने प्रण से तो ––
सब कुछ पा सकते हो प्यारे!
तुम भी ऊँचे हो सकते हो
छू सकते नभ के तारे!!

अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में!