भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाग़ में राह पर अन्धेरा छा रहा है / आन्ना अख़्मातवा / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा |अनुवादक=अनिल जन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
 
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
 
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
 
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
हिम के फ़ायों से हलके होंगे सितारों की तरह, उड़ो।
+
हिम के फ़ायों से हलके होंगे, सितारों से उड़ेंगे बाक़ायदा।
  
 
मार्च 1914, पीटर्सबर्ग
 
मार्च 1914, पीटर्सबर्ग
  
 +
'''मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय'''
 +
 +
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
 
                       Анна Ахматова
 
                       Анна Ахматова
 
         Чернеет дорога приморского сада…
 
         Чернеет дорога приморского сада…

11:44, 9 अक्टूबर 2022 का अवतरण

सागर किनारे बने बाग़ में राह पर अन्धेरा छा रहा है।
लैम्पों से झरने लगी है ताज़ा पीली रोशनी
बेहद शान्त है मन मेरा, जैसे गा रहा है
मुझसे बात मत करो उसकी, बातें वो नागफनी

तुम प्यारे हो, वफ़ादार हो, दोस्त रहेंगे हम सदा
घूमेंगे-फिरेंगे, चूमेंगे और फिर बूढ़े हो जाएँगे
दिन, हफ़्ते, महीने गुज़रेंगे, सहजता से सर्वदा
हिम के फ़ायों से हलके होंगे, सितारों से उड़ेंगे बाक़ायदा।

मार्च 1914, पीटर्सबर्ग

मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                       Анна Ахматова
        Чернеет дорога приморского сада…

Чернеет дорога приморского сада,
Желты и свежи фонари.
Я очень спокойная. Только не надо
Со мною о нем говорить.

Ты милый и верный, мы будем друзьями…
Гулять, целоваться, стареть…
И легкие месяцы будут над нами,
Как снежные звезды, лететь.

Март 1914 г., Петербург