भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अनुबन्ध लिखो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' अधरों से अधरों पर, कोई अनुबन्ध लिखो पलकों के काजर स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

21:24, 23 अक्टूबर 2022 का अवतरण

अधरों से अधरों पर, कोई अनुबन्ध लिखो पलकों के काजर से, तुम नूतन छन्द लिखो ।

मादकता -सी आकर गलियों में बात टिके, ख़ुशबू की पुरवैया सावन के हाथ बिके। रक्त कपोलों पर, छुअन की सुगन्ध लिखो।

देह की लतिका पर इठलाता रहे यौवन, रोम-रोम हो पुलकित पाकर मधु आलिंगन । व्याकुल प्राणों में तुम, फिर प्रेम-प्रबन्ध लिखो

साँसों के इंगित को, जाने बनजारा मन, अलकों की छाया में झूम उठे चन्दन -तन । साथ चलो छाया-सी, ऐसा सम्बन्ध लिखो । -0-(9-4-86: सैनिक समाचार-8 फ़रवरी 87)