"आह ! चीड़ की विपुलता / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पाब्लो नेरूदा |अनुवादक=अशोक पाण्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:23, 30 अक्टूबर 2022 के समय का अवतरण
आह ! चीड़ की विपुलता, टूटती लहरों की गुनगुन
धीमा खेल रोशनियों का, अकेली घण्टी,
गोधूलि गिरती हुई तुम्हारी आँखों पर खिलौना गुड़िया,
धरती की सीपी, जिसमें गाती हैं धरती !
नदियां गाती हैं तुम में और जैसा तुम चाहती हो
मेरी आत्मा उनमें चली जाती है और तुम मन मुताबिक उसे कहीं भेज देती हो
उम्मीद के अपने धनुष में निशाने पर लगाओ मेरी राह को
उन्मत्त मैं अपने तीरों को मुक्त कर दूंगा ।
हर तरफ़ मैं देखता हूँ कोहरे की तुम्हारी कमर
और तुम्हारी चुप्पी जा पकड़ती है मेरे व्यथित पलों को :
ठहर जाते हैं मेरे चुम्बन और मेरी आर्द्र इच्छा
तुम में शरण लेती है तुम्हारे पारदर्शी पत्थरों समेत
आह ! तुम्हारी रहस्यपूर्ण आवाज़, जिसे बजाता है प्रेम
और प्रतिध्वनित होती बीतती शाम को और भी गहरा बनाता है !
ऐसे सघन पलों में देखा है मैंने , खेतों के ऊपर
गेहूँ के कानों को हवा के मुँह में बजते हुए ।
—
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे