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"गोधूलि के समय मेरे आसमान में / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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01:50, 31 अक्टूबर 2022 का अवतरण

(यह कविता रवींद्रनाथ ठाकुर की एक कविता का पुनर्लेखन है)
 
गोधूलि के समय मेरे आसमान में तुम एक बादल की तरह हो
और तुम्हारी आकृति और तुम्हारा रंग वैसे ही हैं जैसे मुझे पसन्द हैं ।
तुम मेरी हो, मेरी, मीठे होंठों वाली स्त्री
और तुम्हारे जीवन में मेरे अनन्त स्वप्न ज़िन्दा रहते हैं

मेरी आत्मा का दिया तुम्हारे चरणों को रंगता है
मेरी खट्टी शराब तुम्हारे होंठों पर अधिक मीठी है,
ओ मेरे सांझ के गीतों की फ़सल काटने वाली
मेरे अकेले सपनों को किस क़दर उम्मीद है कि तुम मेरी हो !

तुम मेरी हो, मेरी, मैं चिंघाड़ता चला जाता हूँ दोपहर को
हवा में और हवा चिंघाड़ती है मेरी विधुर आवाज़ में ।
मेरी आँखों की गहराइयों का आखेट करने वाली, तुम्हारा आक्रमण
रात के तुम्हारे आदर को ठहरा देता है मानो वह पानी हो ।

तुम्हें मेरे संगीत के जाल में फँसा लिया जाता है, मेरे प्यार
और संगीत के मेरे जाल आसमान जितने चौड़े ।
मेरी आत्मा उगती है तुम्हारी शोकग्रस्त आँखों के तट पर ।
तुम्हारी शोकग्रस्त आँखों में शुरू होती है सपनों की दुनिया ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे