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"यहाँ प्यार करता हूँ तुम्हें / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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22:00, 2 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

यहाँ प्यार करता हूँ तुम्हें
गहरे चीड़ के पेड़ों में हवा सुलझाती है खुद को ।
चान्द फ़ास्फ़ोरस की तरह दमकता है आवारा पानियों में ।
सारे के सारे दिन पीछा करते जाते हैं एक - दूसरे का ।

नृत्यरत आकृतियों में खुलती है बर्फ़
पश्चिम से फिसलती गिरती है चान्दी की बत्तख़
कभी - कभी एक पाल । ऊँचे, ऊँचे सितारे ।

ओह ! एक जहाज़ की काली सलीब
इकलौती । कभी - कभी मैं जल्दी जाग जाता हूँ और
मेरी आत्मा तक गीली हो चुकी होती है
दूर समुन्दर के किनारों की ध्वनियाँ और प्रतिध्वनियाँ
यह एक समुन्दर का किनारा है
यहाँ प्यार करता हूँ तुम्हें

यहां प्यार करता हूँ तुम्हें और क्षितिज
तुम्हें छिपाने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ
इन तमाम ठण्डी चीज़ों के बीच मैं अब भी तुम्हें प्यार करता हूँ ।
कभी - कभी मेरे चुम्बन उन भारी जहाज़ों में चले जाते हैं
जो पार करते हैं समुन्दर कहीं भी नहीं पहुँचने को ।
मैं देखता हूँ ख़ुद को उन विस्मृत कर दिए गए पुराने लंगरों की तरह ।
जब दोपहर वहाँ पहुँचती है बल्लियों के प्लेटफ़ार्म उदास हो चुके होते हैं ।

मेरा जीवन थकता जाता है, निरुद्देश्य भूखा ।
मुझे वह प्यारा है जो मेरे पास नहीं है । तुम इतनी दूर हो ।
मेरी अरुचि लड़ती है धीमी गोधूलियों से ।
लेकिन रात आती है और मेरे लिए गाना शुरू करती है ।
चान्द चालू कर देता है सपनों की अपनी घड़ी ।
सबसे बड़े तारे मेरी तरफ़ देखते हैं तुम्हारी आँखों से ।
और जिस तरह मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, हवा में चीड़ के पेड़
उसी तरह गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम, तार जैसी अपनी पत्तियों के साथ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे