"सच न बोलना / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
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मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, | मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, | ||
− | + | डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को ! | |
− | जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी | + | जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा ! |
− | सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा! | + | सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा ! |
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है | जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है | ||
− | भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है! | + | भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है ! |
− | + | बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे | |
− | जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद | + | जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे । |
− | + | ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का, | |
− | फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका! | + | फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका ! |
− | बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे! | + | बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे ! |
− | भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे! | + | भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे ! |
− | ज़मींदार है, | + | ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है, |
− | + | अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है ! | |
− | सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का | + | सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर |
− | एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर! | + | एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर ! |
− | छुट्टा घूमें डाकू | + | छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे, |
− | देखो, | + | देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे ! |
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, | जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, | ||
− | काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा! | + | काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा ! |
− | माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं! | + | माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं ! |
− | बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं! | + | बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं ! |
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है, | मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है, | ||
− | ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है! | + | ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है ! |
− | रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी | + | रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा, |
− | कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा! | + | कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा ! |
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं, | नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं, | ||
− | जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं! | + | जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं ! |
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे, | सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे, | ||
− | भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे! | + | भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे ! |
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का, | माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का, | ||
− | हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का! | + | हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का ! |
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13:13, 4 नवम्बर 2022 का अवतरण
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।
ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !
ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !
छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं !
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का !