"अधेड़ कार्मेन / वोल्फ़ वोन्द्राचेक / उज्ज्वल भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
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कार्मेन की उम्र होने लगी थी, | कार्मेन की उम्र होने लगी थी, | ||
− | वह | + | वह शान्त थी, ख़ूबसूरत, और कहीं ज़्यादा लाचार । |
मर्दों को देखकर उसे जानलेवा दर्द होने लगता था – | मर्दों को देखकर उसे जानलेवा दर्द होने लगता था – | ||
और उसे यह बेवकूफ़ी से भरा खयाल ही नहीं आता था | और उसे यह बेवकूफ़ी से भरा खयाल ही नहीं आता था | ||
− | कि सुखी हुआ | + | कि सुखी हुआ जाए । |
उसे नफ़रत ही अब प्यारी थी | उसे नफ़रत ही अब प्यारी थी | ||
− | और लगातार | + | और लगातार नए-नए रिश्ते |
ऐसे मर्दों के साथ, जिन्हें आराम की तरह औरतों की चाह थी | ऐसे मर्दों के साथ, जिन्हें आराम की तरह औरतों की चाह थी | ||
− | और जो ख़ून रिसते घावों को रिसने देते थे | + | और जो ख़ून रिसते घावों को रिसने देते थे । |
− | ईमानदारी से वह दुखी हो जाती थी | + | ईमानदारी से वह दुखी हो जाती थी । |
− | वह हमेशा किसी दूसरे को चाहती थी | + | वह हमेशा किसी दूसरे को चाहती थी । |
− | हमेशा उसी को, जिसे वह छोड़कर आती थी | + | हमेशा उसी को, जिसे वह छोड़कर आती थी । |
− | बेतकल्लुफ़ वह इस हालत से निपटती थी | + | बेतकल्लुफ़ वह इस हालत से निपटती थी । |
− | दो मर्द कुछ ज़्यादा हो जाते थे | + | दो मर्द कुछ ज़्यादा हो जाते थे । |
− | एक कभी काफ़ी नहीं होता था | + | एक कभी काफ़ी नहीं होता था । |
अगर कोई उसे चूमता था, | अगर कोई उसे चूमता था, | ||
उसे उस दूसरे की चाह होती थी, | उसे उस दूसरे की चाह होती थी, | ||
− | जिसकी उसे कमी महसूस होती थी | + | जिसकी उसे कमी महसूस होती थी । |
− | वह हमेशा से ऐसी थी | + | वह हमेशा से ऐसी थी । |
− | वैसा ही रहेगा, जैसा था | + | वैसा ही रहेगा, जैसा था । |
जब दूसरों को चैन की ज़रूरत होती है, | जब दूसरों को चैन की ज़रूरत होती है, | ||
− | वह खतरे मोल लेती थी | + | वह खतरे मोल लेती थी । |
फ़ैसला न ले पाते हुए वह मतवाली थी | फ़ैसला न ले पाते हुए वह मतवाली थी | ||
और उसके हर प्रेमी को मशक्कत करनी पड़ती थी | और उसके हर प्रेमी को मशक्कत करनी पड़ती थी | ||
और वह बढ़ती मस्ती में तड़पता था, | और वह बढ़ती मस्ती में तड़पता था, | ||
− | क्योंकि जो कुछ भी वह | + | क्योंकि जो कुछ भी वह बन्दा दे पाता था, |
− | उसके लिये कभी काफ़ी नहीं होता था | + | उसके लिये कभी काफ़ी नहीं होता था । |
− | वह करती भी क्या? | + | वह करती भी क्या ? |
− | क्या यह सिर्फ़ एक मज़ाक सा नहीं था? | + | क्या यह सिर्फ़ एक मज़ाक सा नहीं था ? |
− | जो कभी प्यार और हवस का | + | जो कभी प्यार और हवस का ऊँचा पहाड़ था |
− | अब सिर्फ़ | + | अब सिर्फ़ मामूली सा टीला था, कुछ भी ऊँचा नहीं, |
− | मशीन में घिसता बालू – एक कमज़ोर नौटंकी सा | + | मशीन में घिसता बालू – एक कमज़ोर नौटंकी सा । |
− | एक पुराना | + | एक पुराना क़िस्सा । खोया हुआ हिस्सा । |
और कौन किसके साथ सोया, इस क़ातिलाने सवाल का | और कौन किसके साथ सोया, इस क़ातिलाने सवाल का | ||
− | आराम से हल निकलने लगता था | + | आराम से हल निकलने लगता था । |
− | दरवाज़े तेज़ी से खुलते | + | दरवाज़े तेज़ी से खुलते बन्द होते थ । |
− | कपड़ों की अलमारियों में प्रेमियों का आना-जाना जारी रहता था | + | कपड़ों की अलमारियों में प्रेमियों का आना-जाना जारी रहता था । |
− | सबकुछ एक त्रिभुज में घूमता रहता था | + | सबकुछ एक त्रिभुज में घूमता रहता था । |
− | लेकिन ओह, पर्दा कहीं गिर न | + | लेकिन ओह, पर्दा कहीं गिर न जाए । |
− | फिर यह दुनिया नीचे | + | फिर यह दुनिया नीचे धँस जाएगी |
− | दो टुकड़ों में | + | दो टुकड़ों में बँटकर । |
'''मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य''' | '''मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य''' | ||
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00:23, 5 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
कार्मेन की उम्र होने लगी थी,
वह शान्त थी, ख़ूबसूरत, और कहीं ज़्यादा लाचार ।
मर्दों को देखकर उसे जानलेवा दर्द होने लगता था –
और उसे यह बेवकूफ़ी से भरा खयाल ही नहीं आता था
कि सुखी हुआ जाए ।
उसे नफ़रत ही अब प्यारी थी
और लगातार नए-नए रिश्ते
ऐसे मर्दों के साथ, जिन्हें आराम की तरह औरतों की चाह थी
और जो ख़ून रिसते घावों को रिसने देते थे ।
ईमानदारी से वह दुखी हो जाती थी ।
वह हमेशा किसी दूसरे को चाहती थी ।
हमेशा उसी को, जिसे वह छोड़कर आती थी ।
बेतकल्लुफ़ वह इस हालत से निपटती थी ।
दो मर्द कुछ ज़्यादा हो जाते थे ।
एक कभी काफ़ी नहीं होता था ।
अगर कोई उसे चूमता था,
उसे उस दूसरे की चाह होती थी,
जिसकी उसे कमी महसूस होती थी ।
वह हमेशा से ऐसी थी ।
वैसा ही रहेगा, जैसा था ।
जब दूसरों को चैन की ज़रूरत होती है,
वह खतरे मोल लेती थी ।
फ़ैसला न ले पाते हुए वह मतवाली थी
और उसके हर प्रेमी को मशक्कत करनी पड़ती थी
और वह बढ़ती मस्ती में तड़पता था,
क्योंकि जो कुछ भी वह बन्दा दे पाता था,
उसके लिये कभी काफ़ी नहीं होता था ।
वह करती भी क्या ?
क्या यह सिर्फ़ एक मज़ाक सा नहीं था ?
जो कभी प्यार और हवस का ऊँचा पहाड़ था
अब सिर्फ़ मामूली सा टीला था, कुछ भी ऊँचा नहीं,
मशीन में घिसता बालू – एक कमज़ोर नौटंकी सा ।
एक पुराना क़िस्सा । खोया हुआ हिस्सा ।
और कौन किसके साथ सोया, इस क़ातिलाने सवाल का
आराम से हल निकलने लगता था ।
दरवाज़े तेज़ी से खुलते बन्द होते थ ।
कपड़ों की अलमारियों में प्रेमियों का आना-जाना जारी रहता था ।
सबकुछ एक त्रिभुज में घूमता रहता था ।
लेकिन ओह, पर्दा कहीं गिर न जाए ।
फिर यह दुनिया नीचे धँस जाएगी
दो टुकड़ों में बँटकर ।
मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य