"एक बूँद थी माँगी(मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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हम ही खुद को समझ न पाए,ख़ाक दूसरे समझेंगे | हम ही खुद को समझ न पाए,ख़ाक दूसरे समझेंगे | ||
जिसके हित हमने ज़हर पिया,उसने सारी पीर लिखी। | जिसके हित हमने ज़हर पिया,उसने सारी पीर लिखी। | ||
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17:10, 12 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
1
वो जब कभी दूर होते हैं
हम बहुत मजबूर होते हैं।
खो गए सन्देश बीहड़ में
सपन चकनाचूर होते हैं।
2
शाम हुई घबराना कैसा
छूटे कुछ पछताना कैसा
साथ तुम्हारा , कहाँ अकेले
बार बार अकुलाना कैसा।
3
जिसका जब तक साथ लिखा है,तब तक ही वे साथ चलेंगे।
जो छलना बनकरके आए,माना वे दिन रात छलेंगे।
आँधी तूफानों में तुमने,अपमान सहा, साथ न छोड़ा।
तुम जब पथ का बने उजाला,कुछ के दिल दिनरात जलेंगे।
4
एक बूँद थी माँगी हमने,तुमने तो गागर दे डाला
अधरों का प्याला माँगा था,तुमने उर-सागर दे डाला
मैं तो रहा अकिंचन जग में,कुछ भी क्या दे पाया तुमको
तुमने तो सातों जन्मों का,मुझको प्यार अमर दे डाला।
5
ख़ून हमारा पीकर ही वे,जोंकों जैसे बड़े हुए।
फूल समझ दुलराया जिनको,पत्थर ले वे खड़े हुए।।
जनम जनम के मूरख थे हम,जग मेले में ठगे गए।
और बहुत से बचे जो बाक़ी,वे ठगने को अड़े हुए ।।
6
पता नहीं विधना ने कैसे,अपनी जब तक़दीर लिखी
शुभकर्मों के बदले धोखा,दर्द भरी तहरीर लिखी।
हम ही खुद को समझ न पाए,ख़ाक दूसरे समझेंगे
जिसके हित हमने ज़हर पिया,उसने सारी पीर लिखी।
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