"ठहरे मन / दीप्ति पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
Adya Singh (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= दीप्ति पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:44, 13 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
अपनी बेहिसाब दौड़ के क्रम में
बहुत कम ही पीछे देख पाते हैं - गतिशील लोग
जब तक कि
अतीत के तलवों में चुभी कोई कील टीसती न हो
रिसती न हो मवाद हताशाओं और असफलताओं की
ये भविष्य की चिंता की चक्की में पिसे लोग
अपने वर्तमान को 'घुन' बनाने के दोषी लोग
उपेक्षा कर जाते हैं
एक कौर की
पूरी रोटी के आगे
तथाकथित प्रोग्रेसिव लोग
नहीं देख पाते
अपने आगे नदी का बहाव और लहरों की यात्रा
वहीं कुछ धीरज की देहरी पर बैठे - ठहरे मन
होते नहीं विचलित
छद्म महत्वाकांक्षाओं से
लगते नहीं 'पर' उनके संतोष को
कभी- कभी की अतिरिक्त रोटी से
जी भर सोकर भी
नहीं देखते भविष्य के भ्रामक मखमली सपने
जो आँख खुलने पर
यथार्थ के हाथ को निर्ममता से झटक देते हों
लेकिन, ये कोमल जड़ से लोग
भीगे भीगे सीले लोग
नदियों में भिदे होकर भी
देखते हैं उत्साह से नदियों का प्रवाह
और समय का परिवर्तन
ये ठहरे लोग जानते हैं
गतिशीलता का ये सिद्धांत
कि किसी पल के माथे को
उसी पल में चूमा नहीं जा सकता
कि एक धार में दो बार भीगा नहीं जा सकता |