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"एक अरसे बाद लिखी कविता..... / सांत्वना श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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19:54, 16 नवम्बर 2022 का अवतरण

मेरे माथे पर तुम्हें
सहस्त्र आकशगंगाओं का
विस्तार मिलेगा
महसूस करना तुम
होंठो पर हज़ारों ज्वार
अपने चुम्बन की शीतलता से
रोक देना उन्हें वहीं।
अनेक थपेड़ों के बाद बचा अखंडित मेरा शरीर
जब बिखर जाएगा तुम्हारे आलिंगन में
स्पर्श से मोक्ष देना उसे,
राम की ही भाँति
जैसे उन्होंने आहिल्या-पगधूरि
को दिया था।
तुम मल लेना
मेरे पार्थिव शरीर की अस्थि-धूरी अपने हृदय से,
कालजयी आलिंगन की
पृष्ठभूमि रचते हुए
समस्त परम्परा से
उन्मुक्त होकर
हमेशा के लिए
अनुषक्त हो जाना मुझसे।