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"सापेक्षिक जिन्दगी / अजय कुमार" के अवतरणों में अंतर

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अलसाये मन से  
 
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अपनी अलमारी में  
 
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तुम अपनी  
 
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मनपसन्द एक किताब  
 
मनपसन्द एक किताब  
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जितनी देर में  
 
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आइने में देख कर  
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आईने में देख कर  
 
ठीक करते हो  
 
ठीक करते हो  
 
आप अपनी टाई  
 
आप अपनी टाई  

02:22, 17 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

जितनी देर में
अपने बिस्तर से उठकर
अलसाये मन से
अपनी अलमारी में
ढूँढ निकालते हो
तुम अपनी
मनपसन्द एक किताब
उतनी देर में एक ठेलेदार
चढ़ा देता है
तीसरे माले तक
एक बोरी गेहूँ

जितनी देर में
आईने में देख कर
ठीक करते हो
आप अपनी टाई
और अपनी पत्नी से लेते हो
रोज सुबह आफिस जाने के लिए
एक चुम्बन के बाद विदा
उतनी देर में
फुटपाथ पर बैठा
एक मोची बना देता है
अपने ग्राहक का एक जूता

जितनी देर में
तुम नुक्कड़ की दुकान से
खरीदते हो एक पैकेट सिगरेट
उतनी देर में एक कुली
पुल चढ़ कर
किसी यात्री का
पहुँहुचा देता है सारा सामान
उसके डिब्बे तक
 
सापेक्षता के इस नियम से
मापोगे अपनी अगर जिंदगी
तो तुम्हें लगेगा
तुम भोग रहे हो
अपना हर दुख भी
कितने ऐश्वर्य से...