"अतृप्ता / लिली मित्रा" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपनी विजय की हुंकार मत भरना... | ||
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+ | एक बात सदैव याद रखना | ||
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+ | मेरे वजूद पर अपने अधिकारों के परचम गाड़ लो तुम... | ||
+ | पर एक निश्चित गहराई की पहुँच के बाद का धरातल | ||
+ | बस मेरा है.... | ||
+ | और... | ||
+ | मेरे रसातल तक पहुँचने की क्षमता | ||
+ | तुम्हारे इस अंहकार के परचमी दण्ड में नही हैं... | ||
+ | क्योंकि मेरी गहराइयों तक पहुँचने से | ||
+ | तुम्हारे पौरुष का आकार कम होने लगेगा... | ||
+ | तुम्हारा अहम् आहत हो... | ||
+ | यह तुम्हें कदापि स्वीकार्य न होगा... | ||
+ | मुझ तक पहुँचने के लिए... | ||
+ | तुम्हें आषाढ़ के वृष्टि मेघ बनना पड़ेगा... | ||
+ | मुझे अपने प्रेमातिरेकित | ||
+ | जल बिंदुओं से सिंचित करना होगा... | ||
+ | मेरी सतह के हठीले बंद रोम छिद्रों को खोलना होगा... | ||
+ | तब जाकर कहीं... | ||
+ | तुम रिसोगे मुझमें...! | ||
+ | नेहजल पहुँचेगा रसातल तक... | ||
+ | तब पोषित होगा मेरा आत्म... | ||
+ | तुम्हारे प्रेम की अविरल प्रवृष्टियों से... | ||
+ | तब जाकर तृप्त होगी... | ||
+ | ये 'अतृप्ता' युगों युगों की... ! | ||
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04:46, 19 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
हे पौरुष सुनो !
अपने दंभ के दण्ड पर
गर्वीले आधिकारिक
परचम को फहराकर,
मेरे स्त्रीत्व के धरातल पर
उसे गाड़कर...
अपनी विजय की हुंकार मत भरना...
एक बात सदैव याद रखना
मेरे वजूद पर अपने अधिकारों के परचम गाड़ लो तुम...
पर एक निश्चित गहराई की पहुँच के बाद का धरातल
बस मेरा है....
और...
मेरे रसातल तक पहुँचने की क्षमता
तुम्हारे इस अंहकार के परचमी दण्ड में नही हैं...
क्योंकि मेरी गहराइयों तक पहुँचने से
तुम्हारे पौरुष का आकार कम होने लगेगा...
तुम्हारा अहम् आहत हो...
यह तुम्हें कदापि स्वीकार्य न होगा...
मुझ तक पहुँचने के लिए...
तुम्हें आषाढ़ के वृष्टि मेघ बनना पड़ेगा...
मुझे अपने प्रेमातिरेकित
जल बिंदुओं से सिंचित करना होगा...
मेरी सतह के हठीले बंद रोम छिद्रों को खोलना होगा...
तब जाकर कहीं...
तुम रिसोगे मुझमें...!
नेहजल पहुँचेगा रसातल तक...
तब पोषित होगा मेरा आत्म...
तुम्हारे प्रेम की अविरल प्रवृष्टियों से...
तब जाकर तृप्त होगी...
ये 'अतृप्ता' युगों युगों की... !