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"कुछ शेर-दोहे / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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जिगर के दर्द से अपने, दिये जो हमने बाले हैं
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उसी से तीरगी है यह, उसी से यह उजाले हैं।
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तिरा शौक तुझको बहाल हो, हो जीना मेरा मुहाल हो
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तू बढा करे यूं ही चांद सा, मिरा समंदरों सा हाल हो।
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हर सुबह तेरे मुकाबिल आ रहूंगा।  
 
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जो नहीं है वो ही शै बारहा क्यों है
 
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किसी की यादों को  भला मेरा पता क्यों है​।​
 
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अखिल जहान है इससे बहरा।
  
 
खताएं उम्र भर मुझसे होती रहीं
 
खताएं उम्र भर मुझसे होती रहीं

19:12, 29 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

जिगर के दर्द से अपने, दिये जो हमने बाले हैं
उसी से तीरगी है यह, उसी से यह उजाले हैं।

तिरा शौक तुझको बहाल हो, हो जीना मेरा मुहाल हो
तू बढा करे यूं ही चांद सा, मिरा समंदरों सा हाल हो।

डूबता पत्‍थर नहीं हूं सूर्य हूं मैं
हर सुबह तेरे मुकाबिल आ रहूंगा।

डूब जाउंगा यूं ही आहिस्‍ता-आहिस्‍ता
पुरनिगाह कोई यूं ही देखता रहे।

जो नहीं है वो ही शै बारहा क्यों है
किसी की यादों को भला मेरा पता क्यों है​।​

वफा का शोर है कितना गहरा
अखिल जहान है इससे बहरा।

खताएं उम्र भर मुझसे होती रहीं
माफीनामे लिखके पर आजिज ना हुआ।

बारहा भरे बाज़ार मेरे मैं को उछालेगी
ये बेचैनी मुझे फिर फिर बदल डालेगी​।​

हद ए दर्द​ ​अब बयाँ नहीं होता
होने को ​ ​क्या नहीं होता...​।​

कोई यूं भी घर करता है
कि जैसे बे-घर करता है​।​

तेरी किस बात के मानी क्या ​हैं​
ये समझने में उम्र गंवा दी मैंने​।​

वो जो रंग मिटाये हमने
अब दाग़-दाग़ जलते हैं​।​

रोज देखता हूं थकता नहीं हूं
यूँतो कोई आस रखता नहीं हूं।

तू तो बदल गई जो​,​ तस्वीर ना बदलना
नजरों की मेरी जानिब तासीर न बदलना।

पत्थरदिली तुम्हारी कर देती दफ़्न कब का
निगाहे करम तुम्हारा गर पासबाँ न होता​।​

राह उसने न कोई छोड़ी है
यादों की रहगुजर के सिवा​।​

उसकी खुशनिगाही के हैं सभी कायल
उसके मोती मैने भीतर सजा के रखे हैं​।​

लरजता देखता था लहरों पर
तेरी आवाज अब नहीं आती।
 
अलविदा'अ तो ठीक है पर जो रोने का मन करे
लौट आना सबकुछ भूलके जैसे कुछ हुआ न हो।