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"आप मज़े में हैं तो क्या फ़स्ले बहार है / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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उससे पूछो जो अब तक बेरोज़गार है
  
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ज़ख्मी पांवों में बालू के कण भी चुभते
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शोषक बहुतेरे हैं, कोई मददगार है
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सरकारें तो पहले ही मुंह फेर लिए हैं
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करखानों-कंपनियों का भी बंद द्वार है
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सत्ताधीशों, क्या तुम  ज़िम्मेवार नहीं हो
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क्यों मज़लूमों की बस्ती में अंधकार है
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नोटों की मोटी गड्डी पर सोने वालो
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जनता बख़्शेगी न उसे जो गुनहगार है
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टूट गये वे सारे सपने जो देखे थे
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कौन सुनेगा घायल मन की जो पुकार है
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नम आंखों में अश्रु ही नहीं, शोले भी हैं
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धरती-अंबर हिल जायें इतना ग़ु़बार है
 
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20:43, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

आप मज़े में हैं तो क्या फ़स्ले बहार है
उससे पूछो जो अब तक बेरोज़गार है

ज़ख्मी पांवों में बालू के कण भी चुभते
शोषक बहुतेरे हैं, कोई मददगार है

सरकारें तो पहले ही मुंह फेर लिए हैं
करखानों-कंपनियों का भी बंद द्वार है

सत्ताधीशों, क्या तुम ज़िम्मेवार नहीं हो
क्यों मज़लूमों की बस्ती में अंधकार है

नोटों की मोटी गड्डी पर सोने वालो
जनता बख़्शेगी न उसे जो गुनहगार है

टूट गये वे सारे सपने जो देखे थे
कौन सुनेगा घायल मन की जो पुकार है

नम आंखों में अश्रु ही नहीं, शोले भी हैं
धरती-अंबर हिल जायें इतना ग़ु़बार है