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"सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ग़रीब आदमी ही क्यों शिकार होता है
  
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हुआ सबेरा गली में वो लगाता फेरा
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दुआ ज़बान पे है , हाथ में कटोरा है
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भले इन्सान का मुश्किल है गुज़ारा यारो
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गधा वो है जो दूसरों का भार ढोता है
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मदद के नाम पे भी लोग ठगी करते हैं
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संभल के पांव बढ़ाना यहां भी धोखा है
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किसी ने सोच समझकर ये झूठ फैलाया
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वही इन्सान काटता है जो वो बोता है
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मुझे किस्से-कहानियां सुना के भरमाते
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न वो गंगा ही अब रही, न वो कठोता है
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जिसे मैं ख़ैरख़्वाह मान रहा था अपना
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उसी ने मेरे भरोसे का गला घोंटा है
 
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22:34, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है
ग़रीब आदमी ही क्यों शिकार होता है

हुआ सबेरा गली में वो लगाता फेरा
दुआ ज़बान पे है , हाथ में कटोरा है

भले इन्सान का मुश्किल है गुज़ारा यारो
गधा वो है जो दूसरों का भार ढोता है

मदद के नाम पे भी लोग ठगी करते हैं
संभल के पांव बढ़ाना यहां भी धोखा है

किसी ने सोच समझकर ये झूठ फैलाया
वही इन्सान काटता है जो वो बोता है

मुझे किस्से-कहानियां सुना के भरमाते
न वो गंगा ही अब रही, न वो कठोता है

जिसे मैं ख़ैरख़्वाह मान रहा था अपना
उसी ने मेरे भरोसे का गला घोंटा है