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"सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | चुपचाप है वो इसलिए गूंगा समझ लिया | ||
+ | वो ख़ूब सोच समझ के बोले जुबान से | ||
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+ | हालात हैं ख़राब मगर हैसियत बड़ी | ||
+ | चिथड़ों में भी हुजूर वो रहता है शान से | ||
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+ | गोदाम भरे जिसकी कमाई से आपके | ||
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+ | तकलीफ़देह हों जो किसानों के वास्ते | ||
+ | ऐसे सभी कानून हटें संविधान से | ||
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+ | खुद रह के जो भूखा सभी के पेट पालता | ||
+ | आओ तुम्हें मिलायें आज उस महान से | ||
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22:44, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से
बिजली न कहीं फाट पड़े आसमान से
चुपचाप है वो इसलिए गूंगा समझ लिया
वो ख़ूब सोच समझ के बोले जुबान से
मिट्टी का वो माधव नहीं जो सोच रहे हैं
फ़ौलाद का बना है वो देखें तो ध्यान से
हालात हैं ख़राब मगर हैसियत बड़ी
चिथड़ों में भी हुजूर वो रहता है शान से
सब भेड़िए, सियार भगें दुम दबा के दूर
जब ढोल पीटता है वो ऊंचे मचान से
गोदाम भरे जिसकी कमाई से आपके
झोला लिए खाली वही लौटा दुकान से
तकलीफ़देह हों जो किसानों के वास्ते
ऐसे सभी कानून हटें संविधान से
खुद रह के जो भूखा सभी के पेट पालता
आओ तुम्हें मिलायें आज उस महान से