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"इतनी भी लेकिन न किसी की चलने देना / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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राहों में  कांटे बेख़ौफ़ न उगने देना
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देव नहीं है , बुत है वो नादान मत बनो
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एक नसीहत, अपने दिल की सिर्फ़ सुनो तुम
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दुनिया है यह, क्या कहती है कहने देना
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बेशक अपने दिल की खूब भड़ास निकालो
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उसके दिल पर चोट न लेकिन लगने देना
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क्या  मालूम कि सुबह ये कितने पल की मेहमां
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शबनम के क़तरे फूलों पर गिरने देना
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बाहर-बाहर दरिया जैसे दिखते रहना
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13:14, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

इतनी भी लेकिन न किसी की चलने देना
अपनी कमज़ोरी न किसी को बनने देना

कौन मुसाफ़िर जाने कब ज़ख़्मी हो जाए
राहों में कांटे बेख़ौफ़ न उगने देना

देव नहीं है , बुत है वो नादान मत बनो
पत्थर के आगे आंसू मत बहने देना

एक नसीहत, अपने दिल की सिर्फ़ सुनो तुम
दुनिया है यह, क्या कहती है कहने देना

बेशक अपने दिल की खूब भड़ास निकालो
उसके दिल पर चोट न लेकिन लगने देना

क्या मालूम कि सुबह ये कितने पल की मेहमां
शबनम के क़तरे फूलों पर गिरने देना

बाहर-बाहर दरिया जैसे दिखते रहना
भीतर -भीतर ज्वालामुखी सुलगने देना