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"दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | लोग चिल्लाकर अचानक हो गये चुप | ||
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13:17, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था
जिस तरह यह पेड़ सूखा कल हरा था
उससे कैसे ज़िन्दगी की बात करता
वो तो बुज़दिल वक़्त से पहले मरा था
फिर बनावट की उसे क्या थी ज़रूरत
जब वो कुंदन की तरह बिल्कुल खरा था
हां में हां उसकी मिलाता था कभी
तब मगर किरदार उसका दूसरा था
ख़ौफ़ में हर आदमी था जी रहा , पर
मुझको सत्कर्मों का अपने आसरा था
क्या पता फिर कैसा वो क़ानून लाये
देश का हर आदमी उससे डरा था
लोग चिल्लाकर अचानक हो गये चुप
समझ में आया नहीं क्या माजरा था