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"सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | सात जनम तक ऐसे ही बंधन में बाँधे रक्खेंगे | ||
+ | रेशम से मजबूत कहीं जंजीर हमारी आँखों में | ||
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+ | हाथों में सारंगी होठों पर कबिरा की वाणी है | ||
+ | चक्कर रोज़ लगाता एक फ़क़ीर हमारी आँखों में | ||
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17:22, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में
हिमशिखरों से पूछो कितना नीर हमारी आँखों में
लाख करो कोशिश बचने की लेकिन क्या बच पाओगे
ज़हर बुझा कितना नोकीला तीर हमारी आँखों में
मर जायेंगे हाथ तुम्हारा हरगिज़ मगर न छोड़ेंगे
तुमने देखी राँझे वाली हीर हमारी आँखों में
सात जनम तक ऐसे ही बंधन में बाँधे रक्खेंगे
रेशम से मजबूत कहीं जंजीर हमारी आँखों में
जितने पत्थर बाक़ी हैं सब धीरे - धीरे पिघलेंगे
आने वाले कल की है तस्वीर हमारी आँखों में
हाथों में सारंगी होठों पर कबिरा की वाणी है
चक्कर रोज़ लगाता एक फ़क़ीर हमारी आँखों में