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"हमारे शहर को ये क्या हो गया है / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | अमन का मसीहा कहाँ खो गया है | ||
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+ | वही जाने जाँ था, वही जानेमन भी | ||
+ | वही जानी दुश्मन मगर हो गया है | ||
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19:14, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
हमारे शहर को ये क्या हो गया है
सुहाना वो मंज़र कहाँ खो गया है
न ख़ुशबू गुलों में न रंगे - हिना वो
कोई गुलिस्ताँ में ज़हर बो गया है
शहर की हिफ़ाज़त थी जिसके हवाले
शहर का वो दरबान भी सेा गया है
परिन्दे परीशाँ चमन जल रहा है
अमन का मसीहा कहाँ खो गया है
वही जाने जाँ था, वही जानेमन भी
वही जानी दुश्मन मगर हो गया है