भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी
रहमो करम पे उनके है ज़िंदगी हमारी
ऐसी तो लूट पहले इस देश में नहीं थी
गोदाम भर रहे वो , हम हो रहे भिखारी
 
किस बात के हैं लेकिन हम लोग अन्नदाता
फांके पे कट रही है जब ज़िन्दगी हमारी
इस मयकदे में आकर , धोखे का जाम पीकर
हम चूर हैं नशे में टूटेगी कब ख़ुमारी
 
मर्कट भी नाचते हैं , दर्शक भी नाचते हैं
वश में सभी को रखता ऐसा है वो मदारी
 
ईश्वर के नाम पर भी भक्तों को लूटता है
कितना वो ढीट बंदा , कहने को है पुजारी
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits