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"कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | गोदाम भर रहे वो , हम हो रहे भिखारी | ||
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+ | हम चूर हैं नशे में टूटेगी कब ख़ुमारी | ||
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+ | मर्कट भी नाचते हैं , दर्शक भी नाचते हैं | ||
+ | वश में सभी को रखता ऐसा है वो मदारी | ||
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+ | ईश्वर के नाम पर भी भक्तों को लूटता है | ||
+ | कितना वो ढीट बंदा , कहने को है पुजारी | ||
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21:43, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी
रहमो करम पे उनके है ज़िंदगी हमारी
ऐसी तो लूट पहले इस देश में नहीं थी
गोदाम भर रहे वो , हम हो रहे भिखारी
किस बात के हैं लेकिन हम लोग अन्नदाता
फांके पे कट रही है जब ज़िन्दगी हमारी
इस मयकदे में आकर , धोखे का जाम पीकर
हम चूर हैं नशे में टूटेगी कब ख़ुमारी
मर्कट भी नाचते हैं , दर्शक भी नाचते हैं
वश में सभी को रखता ऐसा है वो मदारी
ईश्वर के नाम पर भी भक्तों को लूटता है
कितना वो ढीट बंदा , कहने को है पुजारी