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"आराम न भाया / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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चले गए सब
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छोड़-छोड़कर साथ;
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दिन-रात जिया-
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है रिश्तों को
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फिर
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धोखा खाया है ।
  
 
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05:01, 20 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

रात और दिन
काम ही काम
आराम न भाया है;
किसी मशीन के
पुर्ज़े-जैसा
ये जीवन पाया है ।
कब जिए
अपने लिए हम
याद नहीं
पड़ता है;
हर पल मेरी
यादों में अब
काँटे-सा
गड़ता है ।
इन काँटों को
सेज बनाकर
मन को बहलाया है ।
जिधर गए
आरोप बहुत –से
स्वागत करने
आए;
खाली आँचल
देख हमारा
भरने को
अकुलाए ।
आँचल भरने पर
दिल- दरिया ये
भर-भर आया है ।
खाली हाथ
चले थे घर से
आज भी
खाली हाथ ;
शाम हो गई
चले गए सब
छोड़-छोड़कर साथ;
दिन-रात जिया-
है रिश्तों को
फिर
धोखा खाया है ।