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"गुलमोहर की छाँव में / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | गुलमोहर में छाई है | ||
+ | हरी पत्तियों की पलकों में | ||
+ | कलियाँ भी मुस्काईं हैं | ||
+ | बाहें फैला बुला रहे हैं,हम सबको हर ठाँव में | ||
+ | चार बरस पहले जब इनको | ||
+ | रोप–रोप हरसाए थे | ||
+ | कभी दीमक से कभी शीत से, | ||
+ | कुछ पौधे मुरझाए थे | ||
+ | हर मौसम की मार झेल ये बने बाराती गाँव में । | ||
− | + | सिर पर बाँधे फूल -मुरैठा | |
+ | सज–धजकर ये आए हैं | ||
+ | मौसम के गर्म थपेड़ों में | ||
+ | जी भरकर मुस्काए हैं | ||
+ | आओ हम इन सबसे पूछें -कैसे हँसे अभाव में | ||
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+ | '''(31-3- 2006: आगरा कैण्ट स्टेशन-7-05 06,अनुभूति 16 जून-06)''' | ||
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05:05, 20 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
गर्म रेत पर चलकर आए,
छाले पड़ गए पाँव में
आओ पलभर पास में बैठो, गुलमोहर की छाँव में ।
नयनों की मादकता देखो,
गुलमोहर में छाई है
हरी पत्तियों की पलकों में
कलियाँ भी मुस्काईं हैं
बाहें फैला बुला रहे हैं,हम सबको हर ठाँव में
चार बरस पहले जब इनको
रोप–रोप हरसाए थे
कभी दीमक से कभी शीत से,
कुछ पौधे मुरझाए थे
हर मौसम की मार झेल ये बने बाराती गाँव में ।
सिर पर बाँधे फूल -मुरैठा
सज–धजकर ये आए हैं
मौसम के गर्म थपेड़ों में
जी भरकर मुस्काए हैं
आओ हम इन सबसे पूछें -कैसे हँसे अभाव में
-0-
(31-3- 2006: आगरा कैण्ट स्टेशन-7-05 06,अनुभूति 16 जून-06)