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"हम सब कुछ सहते हैं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर

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निपट अकेले  
 
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हम सब कुछ सहते हैं
 
हम सब कुछ सहते हैं

20:54, 22 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

दु;ख में होकर
निपट अकेले
हम सब कुछ सहते हैं
सुख में कोई
साथ न हो तो
फिर आँसू बहते हैं ।
जानोगे तुम
कैसी होती
मन की व्याकुलता है
पता तभी तो
चल पाता है
जब कोई छलता है ।
छले गए हम
फिर भी बोलो
-कब किससे कहते हैं ?
जब तक पंखों-
में ताकत है
दूर देश तक जाना

बाट देखता
जब तक कोई
तब तक वापस आना
देहरी पर जब
 तक है कोई
हम तब तक रहते हैं ।
-0-
21 फ़रवरी ,2010