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"दिखाई दे रही है उसमें ख़्वाब की सूरत / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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दिखाई दे रही है उसमें ख़्वाब की सूरत
अँधेरी ज़िन्दगी में आफताब की सूरत

हरेक सिम्त पे बिखरी ख़याल की ख़ुशबू
छुपा के रखता है वो इक गुलाब की सूरत

वो मेरी मुश्किलों में मेरे साथ रहता है
नदी है वो, नहीं है वो हबाब की सूरत

हरेक हर्फ़ में वो जी रहा मुहब्बत को
मिली है उसको हसीं इक किताब की सूरत

रहा है ज़ोर सरहदों का उसपे कब ‘गरिमा’
लबों पे ज़िन्दा है आबे–चिनाब की सूरत