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किस पड़ाव पर हो ?
 
== मेरे हिस्से की रोटी ==
 
जिल्लत सी लगती है
 
जिन्दगी तब
 
जब ..........
 
मेरे ही हिस्से की रोटी
 
कालकूट बन जाती है
 
हलक ढलने से पहले
 
परोसी जाती है जब
 
मुझसे पहले
 
छापा पत्र पर
 
वृहत विशाल
 
इश्तिहार की थाली मे
 
राजनिती की
 
स्वार्थ साधक
 
रोटी बनकर
 
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#रचना_महावीर_जोशी_पुलासर_सरदारशहर_राजस्थान
== मानव ==