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"ओ चिरैया / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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हुई है तेरी प्यास!
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जंगल जलकर
 
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हरदम चुभता है
 
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तपती
 
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लोहे-सी चट्टानें
 
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धूप चली
 
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धरती पिंघलाने
 
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जागे हुए उदास।
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उड़ी है
 
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निन्दा जैसी धूल,
 
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चुभन-भरे
 
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पग-पग हैं बबूल
 
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यही चुभन
 
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रचती है तेरी –
 
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पीड़ा का इतिहास।
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03:59, 6 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

ओ चिरैया!
कितनी गहरी
हुई है तेरी प्यास!

जंगल जलकर
ख़ाक हुए हैं
पर्वत –घाटी
राख हुए हैं ,
आँखों में
हरदम चुभता है
धुआँ-धुआँ आकाश।

तपती
लोहे-सी चट्टानें
धूप चली
धरती पिंघलाने
सपनों में
बादल आ बरसे
जागे हुए उदास।

उड़ी है
निन्दा जैसी धूल,
चुभन-भरे
पग-पग हैं बबूल
यही चुभन
रचती है तेरी –
पीड़ा का इतिहास।
-0-[11-4-1994: शीराज़ा मार्च 96,अमृत सन्देश,26-6-94, आका-अम्बिकापुर 6-6-99]