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"अधजला गीत / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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थके चरण, पथ में धुँधलापन,
 
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उमड़ रहा हृदय से रुदन  
 
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दफ्न करो इनको पलभर  
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पकड़ो कर, मैं पार लगा दूँ।
 
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वह देखो! देखो!! भोर हुआ  
 
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मैं वीणा के तार जगा दूँ।  
 
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'''(01-06-1979: सूत्रकार कलकत्ता जनवरी 1980)'''
 
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21:39, 8 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

आओ लिख दूँ एक अधजला गीत
तुम्हारे अधरों पर
और तुम्हारी आँखों में
नीरव-सा संसार बसा दूँ।
सजल बरौनियाँ हैं पहने
रिश्तों की भारी जंजीर
कण-कण को पोंछ छाँव में
विद्रोह का अम्बार लगा दूँ।
थके चरण, पथ में धुँधलापन,
उमड़ रहा हृदय से रुदन
दफ्न करो इनको पलभर,
पकड़ो कर, मैं पार लगा दूँ।
वह देखो! देखो!! भोर हुआ
किलक-किलक किरनें दौड़ीं
अलकें-पलकें चूम-चूम
मैं नूतन उपहार सजा दूँ।
ऊर्ध्व नयन होकर देखो
धरा से भी ऊँचा है गगन
कण्ठ से तुम शून्य भर दो
मैं वीणा के तार जगा दूँ।
(01-06-1979: सूत्रकार कलकत्ता जनवरी 1980)