भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दहके फूल पलाश के / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
सुधियों की व्याकुल छाती में,  
 
सुधियों की व्याकुल छाती में,  
 
               अंकुर फूटे आस के।
 
               अंकुर फूटे आस के।
-0-
+
-0--( 28-9 -76: आकाशवाणी गौहाटी 10 -12-79)
  
  
 
</poem>
 
</poem>

06:11, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण


आँचल में छुपकर शरमाए,
दहके फूल पलाश के
रोम-रोम के साँस हो गए,
 प्यासे मधुर सुवास के ।

भोर उतर आई माथे पर
बिन्दिया में सिन्दूरी रूप,
तन की सहमी झुकी डाल पर
लिपटी आलिंगन की धूप ।
तैर गए पलकों पर आकर,
          सपने मदिर उजास के।

फूल खिला या अधर पंखुड़ी-
है डूबी नरम गुलाब में
या बसन्त का भीगा यौवन
आँखों से ढली शराब में।
लाज-भरी बाहों में बँधकर,
             झुके नयन संन्यास के।

कोमल कर की एक छुअन
बन गई युग-युग का इतिहास,
इन प्यासी अलकों की छाया
हो गई उलझन का मधुमास।
सुधियों की व्याकुल छाती में,
              अंकुर फूटे आस के।
-0--( 28-9 -76: आकाशवाणी गौहाटी 10 -12-79)