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"कितना अच्छा होता! / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर

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यूँ बरसों पहले मिल जाते  
 
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तुम हो मन के मीत हमारे
 
तुम हो मन के मीत हमारे
 
रिश्तों के धागों से ऊपर
 
रिश्तों के धागों से ऊपर
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।</poem>
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-0--(26 मार्च, 2010)
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08:18, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

कितना अच्छा होता !
कितना अच्छा होता !जो तुम
यूँ बरसों पहले मिल जाते
सच मानो इस मन के पतझर-
में फूल हज़ारों खिल जाते
खुशबू से भर जाता आँगन ।
कुछ अपना दुख हम कह लेते
कुछ ताप तुम्हारे सह लेते
कुछ तो आँसू पी लेते हम
 कुछ में हम दो पल बह लेते
हल्का हो जाता अपना मन ।
तुमने चीन्हें मन के आखर
तुमने समझे पीड़ा के स्वर
तुम हो मन के मीत हमारे
रिश्तों के धागों से ऊपर
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।
-0--(26 मार्च, 2010)