भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखो / विपिनकुमार अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिनकुमार अग्रवाल |संग्रह= }} <Poem> तट है जैसा होत...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
नग से जड़ी | नग से जड़ी | ||
राजा की अंगूठी | राजा की अंगूठी | ||
+ | |||
+ | अभिलाषा पूरी करने वाली | ||
+ | कैसी भी आश्वस्ति | ||
+ | कोई परिचित भंगिमा | ||
+ | बाज़ार में घूमता | ||
+ | वनवासी साथी | ||
+ | मृगशावक-सा | ||
+ | और यह रहे | ||
+ | शाश्वत चिन्ह-- | ||
+ | |||
+ | स्वप्न के पीछे | ||
+ | छुपे यथार्थ का | ||
+ | प्रिय रहस्य | ||
+ | मन्दिर के विलास में | ||
+ | प्रतिमा | ||
+ | पावन | ||
+ | रंग बदले | ||
+ | वत्सल पयोधर | ||
+ | आँचल तले | ||
</poem> | </poem> |
01:56, 12 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
तट है जैसा
होता है समुद्र का
पाँव
छोड़ते थे जो चिन्ह
रेत पर
डूब गए हैं गहरे
यह
किनारे पर
आई लहरें
किन गतियों की
पहचान है।
यह गली वैसी
जैसी किसी शहर की
मटियाली हवा में
तैरती मछलियाँ
जुड़वाँ
ढूंढ़ती हैं
आज भी
पीले पत्तों में नवीन पल्लव
नग से जड़ी
राजा की अंगूठी
अभिलाषा पूरी करने वाली
कैसी भी आश्वस्ति
कोई परिचित भंगिमा
बाज़ार में घूमता
वनवासी साथी
मृगशावक-सा
और यह रहे
शाश्वत चिन्ह--
स्वप्न के पीछे
छुपे यथार्थ का
प्रिय रहस्य
मन्दिर के विलास में
प्रतिमा
पावन
रंग बदले
वत्सल पयोधर
आँचल तले