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"निज की खोज / शील" के अवतरणों में अंतर

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जी करता है, खोजूँ निज को,
नैसर्गिक निजत्व के –
अक्षर भापूँ ।
स्वाह-सुधा ऋचाएँ मापूँ ।

जी करता है, जल-सा उछलूँ
नभ को नापूँ –
खोजूँ निज को ।

जी करता है ...
मृत्युजयी प्रकाश पहिनकर –
लोक-लोक आलोक निहारूँ
जन सामान्य विश्व को जोड़ूँ –
निज को खोजूँ ।

जी करता है ...
कलह-कवचधारी दर्शन की ...
मूँछ उखाड़ूँ, पूँछ काट दूँ ।

जी करता है ...
पा ही लूँगा –
पलनों में किलकारी भरते –
मुस्काते डालों में ।

18 जून 1987