भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तासीर / रुचि बहुगुणा उनियाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:43, 25 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण

महल के ऊँचे झरोखे से
दिनभर तकती रहती थीं
दो आँखें

वैद्य न ढूँढ़ पाया
बीमारी की वजह
नब्ज़ टटोल के ।

शवयात्रा के साथ-साथ
चल रहा था कोई
चुप्पी साधे, आँसू रोके

आजकल सीढ़ियों पर बैठे
पानी पर उकेरता है
एक चेहरा कोई ।

पानियों की तासीर
अचानक बहुत ही
फ़ायदेमन्द हो गई है ।