भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चिट्ठियाँ / कमल जीत चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमल जीत चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
फ़ोन पर लिखीं चिट्ठियाँ
 +
फ़ोन पर बाँचीं चिट्ठियाँ
 +
फ़ोन पर पढ़ीं चिट्ठियाँ
  
 +
अलमारी खोलकर देखा एक दिन
 +
बस, कोरा और कोहरा था ...
 +
 +
डायल किया फिर
 +
फिर सोची चिट्ठियाँ
 +
मगर कुछ नम्बर
 +
और कुछ आदमी
 +
बदल गए थे
 +
 +
कबूतर मर गए थे ।
 
</poem>
 
</poem>

15:28, 22 मई 2023 के समय का अवतरण

फ़ोन पर लिखीं चिट्ठियाँ
फ़ोन पर बाँचीं चिट्ठियाँ
फ़ोन पर पढ़ीं चिट्ठियाँ

अलमारी खोलकर देखा एक दिन
बस, कोरा और कोहरा था ...

डायल किया फिर
फिर सोची चिट्ठियाँ
मगर कुछ नम्बर
और कुछ आदमी
बदल गए थे

कबूतर मर गए थे ।