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"अगस्त का भित्ति-चित्र / लिअनीद गुबानफ़ / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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मन बहुत उदास है
और सोने का वक़्त हो गया है
शोर कर रहे हैं चहलक़दमी करते डॉक्टर
आड़े-तिरछे उड़ रही है अबाबील
आड़ी-तिरछी चल रही है पनचक्की ।
भरे झूठ की धुन्ध में
थरथरा रही है छाती ।
ओ मेरी नीली आँखों वाली,
न जगा तू भूरी आँखों वाली को ।
शिथिल पड़ रही है लाल गालों की लज्जा
ज़िन्दगी को चादर की तरह उठाते
मुझे समझ आया
आड़े-तिरछे कितना जला चुका हूँ यह आकाश
तुम्हारे-बिना ।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Леонид Губанов