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क्या हुआ / अशोक तिवारी

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प्यार करना चाहता वह
चाहता मज़बूत और लंबे डगों से
उस ज़मीं को नापना वह
जोतता जिसको रहा वह उम्रभर
उम्रभर सींचता रहा
एक घर
आकंठ जो डूबा रहा
मेहनत की अंधेरी अँधेरी खाइयों में
एक टुकड़ा धूप की ख़ातिर
क्या हुआ ....
उड़ता रहा बेख़ौफ़ उन बाजों के बीच
तोलते ही जा रहे जो
उसके हरेक हर क़दम को
और जिनको सालते तमाम डर
कि क्यों नहीं मजबूर है वो
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