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"ज़ंजीर / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार" के अवतरणों में अंतर

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मृत्यु से पहले, सभ्यता
 
मृत्यु से पहले, सभ्यता
मुझे क्या देकर जाएगी सोच न सका
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मुझे क्या देकर जाएगी सोच न पाया
  
 
जो सिर्फ़ अपने पैरों की ज़ंजीर ही
 
जो सिर्फ़ अपने पैरों की ज़ंजीर ही

13:45, 21 जून 2023 के समय का अवतरण

वृक्ष है, ऐसा भ्रम होता था
फिर किसी दिन सोचा – परिन्दा है
अब मेरी सब बातें
जितनी दूर तक जाती है
सब तालाब सूख जाते हैं ।

नदी में, बस, रेत ही रेत दिखाई देता है
समन्दर तो मीलों दूर तक सिर्फ़ गीला कीचड़ –
हज़ारों मरे हुए परिन्दे गड़े हुए हैं वहाँ
गड़ी हुई हैं मरी हुई मछलियाँ ।
नील रंग की तिमिंगल। सफ़ेद मगर ।

तट पर अकेले ही बैठा हूँ
सर पर आकाश में छाए हुए हैं
तेज़ बरसने वाले काले घनघोर बादल ।

मृत्यु से पहले, सभ्यता
मुझे क्या देकर जाएगी – सोच न पाया –

जो सिर्फ़ अपने पैरों की ज़ंजीर ही
दे गई है मुझे ।

जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित