भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ यशोदा का जो दुलारा था / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) ('{{KKCatGhazal}} <poem> माँ यशोदा का जो दुलारा था कम नहीं देवकी को...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
कृष्ण आँखों का सब की तारा था | कृष्ण आँखों का सब की तारा था | ||
− | दे दिया सब | + | दे दिया सब उसे बिना मांगे |
घर सुदामा का यूँ संवारा था | घर सुदामा का यूँ संवारा था | ||
10:40, 2 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
माँ यशोदा का जो दुलारा था
कम नहीं देवकी को प्यारा था
गोपियाँ, ग्वाल-बाल और गौवें
कृष्ण आँखों का सब की तारा था
दे दिया सब उसे बिना मांगे
घर सुदामा का यूँ संवारा था
पादुका छोड़ कर चले आए
द्रौपदी ने जहां पुकारा था
ज्ञान गीता का दे के अर्जुन को
मोह के गर्त से उबारा था
अन्ततः हो गया महाभारत
धर्म जीता, अधर्म हारा था
कौरवों के 'रक़ीब' अर्जुन को
द्वारिकाधीश का सहारा था