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मुझे मेरी स्मृतियाँ
एक हारे हुए उस
रेस के घोड़े की तरह मिली
जिसे रेस का हिस्सा बनाने की हिचक तो थी ही पर
गोली भी नहीं मार सकते थे
वह मेरे संग पलता रहा
साथ उठता-बैठता
कहकहे लगाता, रोता-रुलाता
ठीक अपने खुरों में ठुंकी
लोहे के नाल की तरह
मजबूत
जीवन का हिस्सा
जिसे मैं वर्त्तमान और भविष्य के
खूंटे में नजर बट्टू सा टांग
निश्चिंत हो रहती हूँ।