भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हूँ / अनीता सैनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सैनी }} {{KKCatKavita}} <poem> प्रेम फ़िक्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:17, 13 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
प्रेम फ़िक्र बहुत करता है
लगता है जैसे-
ख़ुद को समझाता रहता है
कहता है-
"डिसीजन अकेले लेना सीखो
राय माँगना बंद करो
तुम मुझसे बेहतर करती हो।"
दो मिनट का फोन, पाँच बार पूछता है
"तुम ठीक हो?
कोई परेशानी तो नहीं
कुछ चाहिए तो बताना
मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ
और हाँ
व्यस्तता काफ़ी रहती है
क्यों करती हो फोन का इंतजार ?
कहा था न समय मिलते ही करूँगा
अच्छा कुछ दिन काफ़ी व्यस्त हूँ
फील्ड से लौटकर फोन करता हूँ।"
लौटते ही फिर पूछता है
"तुम ठीक हो?"
आवाज़ आती है-“हूँ”
और आप?
फिर आवाज़ आती है- “हूँ ”