भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं और मेरा अक्स / अनीता सैनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सैनी }} {{KKCatKavita}} <poem> अँजुरी से छि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:23, 13 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
अँजुरी से छिटके जज़्बात
मासूम थे बहुत ही मासूम
पलकों ने उठाया
वे रात भर भीगते रहे
ख़ामोशी में सिमटी
लाचारी ओढ़े निर्बल थी मैं।
तलघर की कोठरी के कोने में
अनेक प्रश्नों को मुठ्ठी में दबाए
बेचैनियों में सिमटा
बहुत बेचैन था मेरा अक्स।
आँखों में झिलमिलाती घुटन
धुएँ-सा स्वरूप
बारम्बार पीने को प्रयासरत
दरीचे से झाँकती
विफलता की रैन बनी थी मैं।
निर्बोध प्रश्नों को
बौद्धिकता के तर्क से सुलझाती
असहाय झूलती
बरगद की बरोह का
धरती में धसा स्तम्भ बनी थी मैं।