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स्त्री / दीपा मिश्रा

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ओकर अयबाक भ्रूणक रूपमे अबिते आहट नै होइये ओ सुनलक ओकरा पकड़ब सेहो कठिन पाठ करू पाठ ने कियो देखैये बेटा हुए आ ने ओ कोनो अपनलिए ई पहीरू जंत्र चिन्ह छोड़ैये कुलक चिराग आओतनै बुझैये मान मर्यादा सुनलक लक्ष्मणक खींचल सहमल रेखाकेँ कोनो औचित्य आ गर्भहिमेओकर आकर्षण मात्र चिचियाअलओ सुगंध रहैत छैक हम बेटी छी जे शरीरक कोनो ग्रंथिसँ बेटा अहाँक उकसाओल जाइत छैक कुलक चिराग बनतमोनसँ अपाहिज हम दू कुलक दीप छी उन्मत्त मात्र रहैये जन्मक संगहि अपन कामुकतामे ओकरा बुझा गेलैक घोघ, परदा, झाँप, ओकर आवश्यकता टाप,सरकी,ओहार ककरा आ कतेक छैक सबटा ओकरे डरसँ अपनाओल ओ हेरा गेल कतौडर होइत छल बिसरिके अपनाकेँ कहीं खटाँसकेँ सिलेट कगजिया संग नजरिमे नै आबि जाए झाँझ छोलनी तक कियाक त' खटांँस चिन्ह गेल खाली जंगले टामे ताबत बुझायल नै होइत छल की हम जागल छी ? खँटास अहुखन अछि हमर मोन, हमर शरीर हमर इच्छा,हमर पिपासा कतय गेल मुखौटा पहिरने एम्हर ओम्हर तकलक सबठाम अपना सन कतेको भेट जायतगेल जहिया एहि खटाँस सबहक कसियाके सब हाथ मिलौलक मुँह उघाड़ हुए लागत आब समय आबि गेल बुझु तहिये मोनमे कोनो गाँठ नै राखब बरजोरिक अंतिम केस हृदयक अंत:करण संग पुलिसमे दर्ज होयत सब किछु कहब आर ओकर बाद सब किछु बाँटब बेटी लेल नै चिंतित रहत स्त्री आब स्त्रीक संग चलत कोनो पिता जाहिसँ आबऽ बला समयमेआने रहत असुरक्षितस्त्री भ्रूण कोनो अंगना बस ई सुनय जे आवश्यकता नहि रहत कोनो घोघ, पर्दा, ओहारक कियाक त' लाज घरक दीप अबय बाली अछिआँखिमे रहब बेसी आवश्यक लिए ई डोरा अहाँ बान्हू
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