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"आम ज़िन्दगी / विचिस्लाफ़ कुप्रियानफ़ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
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अपने क्षितिज पर । | अपने क्षितिज पर । | ||
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+ | Вячеслав Куприянов | ||
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+ | кто-то ходит над твоей головой | ||
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+ | глядя в потолок вздыхаешь — небо | ||
+ | глядя на пол твердишь — земля | ||
+ | грустишь ни души не видя | ||
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11:25, 19 जुलाई 2023 का अवतरण
आम जीवन का एक अजीब एहसास
कोई चलता है ऊपर, तुम्हारे सिर के,
किसी के सिर पर
चलते हो तुम ।
देखकर छत, भरते हो आह –
आकाश ।
देख कर फ़र्श, तुम कहते हो –
पृथ्वी ।
कितने उदास हो तुम
न पाकर
एक ही आत्मा
अपने क्षितिज पर ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिविक रमेश
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Вячеслав Куприянов
Нормальная жизнь
Удивительное ощущение
нормальной жизни
кто-то ходит над твоей головой
ты ходишь над чьими-то головами
глядя в потолок вздыхаешь — небо
глядя на пол твердишь — земля
грустишь ни души не видя
на своей черте горизонта