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Kavita Kosh से
गुज़रती हो मेरे क़रीब से लबादा पहने काला
बड़ी उपेक्षा से छिपाती हो अपना पेशा
और पीले चेहरे पर झलकता वो इशाराझलके जो कसाला
मुझे नहीं पता तुम जाती हो कहाँ