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"हमेशा भागती ही रहती हो तुम / अनतोनिओ मचादो / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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वापिस लौटो, तुम रोको क़दम
 
वापिस लौटो, तुम रोको क़दम
 
होठों का तेरे मकरन्द ये कड़वा
 
होठों का तेरे मकरन्द ये कड़वा
मैं चूमना चाहूँ गुल ये तेरे, हमदम !               
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मैं चूमना चाहूँ, गुल तेरे, हमदम !               
  
 
'''स्पानी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''स्पानी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

16:17, 29 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

हमेशा भागती ही रहती हो तुम, हमेशा
गुज़रती हो मेरे क़रीब से लबादा पहने काला
बड़ी उपेक्षा से छिपाती हो अपना पेशा
और पीले चेहरे पर झलके जो कसाला

मुझे नहीं पता तुम जाती हो कहाँ
तेरा सौन्दर्य कुँवारा, ख़ूबसूरत थरथराता
यह रात अन्धेरी, तुम खोजती हो क्या
नहीं जानता नींद में तेरी सपना कैसा फड़फड़ाता

न जानूँ मैं ये, किसके लिए खुलेगा रस्ता
किसके लिए खुलेगा तेरी अतिथिहीन सेज का बस्ता
.......................................................
रोको क़दम तुम सुन्दरी अपने
वापिस लौटो, तुम रोको क़दम
होठों का तेरे मकरन्द ये कड़वा
मैं चूमना चाहूँ, गुल तेरे, हमदम !

स्पानी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब पढ़िए रूसी अनुवाद में यही कविता
                  Antonio-Machado
            Беглянка всегда, и всегда

Беглянка всегда, и всегда
со мною рядом, вся в черном,
едва скрывая презренье
на бледном лице непокорном.

Не знаю, куда ты уходишь,
где ночью краса твоя с дрожью
постель себе брачную ищет,
какие сны растревожат
тебя и кто же разделит
негостеприимное ложе.
. . . . . . . . . . . . . .
Краса нелюдимая, стой
на этом ночном берегу!
Хочу целовать я горький
цветок твоих горьких губ.

लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी भाषा में पढ़िए
               Antonio-Machado
    SIEMPRE FUGITIVA Y SIEMPRE...

Siempre fugitiva y siempre
cerca de mí, en negro manto
mal cubierto el desdeñoso
gesto de tu rostro pálido.
No sé adónde vas, ni dónde
tu virgen belleza tálamo
busca en la noche. No sé
qué sueños cierran tus párpados,
ni de quién haya entreabierto
tu lecho inhospitalario.
...............................
Detén el paso belleza
esquiva, detén el paso.
Besar quisiera la amarga,
amarga flor de tus labios.